विगत 04 अप्रैल का मेरा हवाई जहाज(मेरा साइकिल) यात्रा(95किलोमीटर)

       
             यात्रा परिपथ...... आनंदपुर से प्रस्थान करते हुए सहोरा, मल्लहीपट्टी, रतनपुरा, ब्रह्मोत्तरा, थलवारा के महादेव मंदिर पर रुके और फिर  हिछौल, अम्मा डीह में नरेश सहनी से मिलते हुए नरकैट, महपत्ती, फुलवरिया, छतौना, ललबन्ना डीह, पोअरिया, बिशनपुर, हनुमाननगर ग्रामीण श्री सीताराम मिश्र के यहां रूककर भोजन हुआ तत्पश्चात अंकित कुमार के साथ हनुमाननगर प्रखंड कार्यालय (फुलवरिया डीह) गया जहां रोहित कुमार(पिता:- महेश पासवान, 2कक्षा) से मिलकर हनुमाननगर उत्क्रमित मध्य विद्यालय के रास्ते पुनः अंकित कुमार को घर पर छोड़ते हुए गोढैला, धामावीर, सिंहासिनी माई स्थान, पटोरी, बसुआरा, तीसी डीह, मोरो-गोढवार, अरै, अतरबेल, बिठौली, सिमरी, कादिराबाद, दरभंगा राज परिसर, लहेरियासराय, पंडासराय, रामनगर, मिर्जापुर, देवकुली, चंदनपट्टी, रघुनाथपुर, होरलपट्टी होते हुए पुनः अपने गंतव्य पर "आनंदपुर" पहुंच 95किमी के यात्रा का विराम हुआ।

            हमारे आज के यात्रा परिपथ के ठीक बीच में आता है दरभंगा जिला का अति महत्वपूर्ण और विशालतम ऐतिहासिक परिक्षेत्र.....

        जिसमें अम्मा डीह, कोइलवारा, नरकैट, छतौना, भीमा डीह, ललबन्ना डीह, तारालाही, डीहलाही, धर्मपुर पोखर, ओझौल, बंगलिया डीह, काली, पटोरी, अरै आदि आदि महत्वपूर्ण पुरास्थलें हैं।

       पूर्व विदित है कि ओझौल गांव(बहादुरपुर, दरभंगा) के धर्मपुर पोखर(तालाब) से जेसीबी से मिट्टी कटाई के दौरान वर्ष 2018 25 अप्रैल को विष्णु, 29 मई को वामन सदृश एक पैनल पर उकेरा गया प्रतिमा और 18 जून को पुनः एक भव्य विष्णु प्रतिमा जेसीबी से मिट्टी कटाई के दौरान मिल चूका है। वर्तमान में पहला प्रतिमा चाँदडीह, दूसरा तारालाही और तीसरा ओझौल गांव के ब्रह्मस्थान में स्थापित किया गया था, जिसे बाद में ग्रामीणों ने दरभंगा स्थित MLS संग्रहालय में उचित धरोहर सुरक्षण और शोध कार्य के उद्देश्य से सुपुर्द कर दिया। प्रारंभ में ही मेरा आकलन रहा था कि यहाँ से कम से कम 5 प्रतिमाएं प्राप्त हो सकते हैं। गुप्त सूचनाओं के आधार पर दो और प्रतिमाएं प्राप्त हुए थे जिसका अभी तक कोई अता-पता नहीं है।

        विष्णु प्रतिमा में बाईं तरफ नीचे में खड़ी सरस्वती, दायीं तरफ खड़ी लक्ष्मी, सबसे नीचे बाई तरफ बैठे हुए गरुड़, कमल, चारों तरफ उड़ते हुए गन्धर्व,  गज-व्याल और कीर्ति मुख देखे जा सकते हैं इसके साथ ही वनमाल, जनेऊ, मुकुट आदि प्रतिमा की भव्यता प्रस्तुत कर रहे हैं। विष्णु ऊपर के दाहिने हाथ में गदा और बाएं हाथ में चक्र,  और निचले बाएं हाथ में शंख धारण किए हुए हैं।

          विष्णु प्रतिमा  का निचला दायां हाथ का अंगूठा और मध्यमा अंगुली, गरुड़ के बाएं पैर के घुटने और लक्ष्मी के दाहिना हाथ भग्न है।

           मूर्तिकला मर्मज्ञ डा सुशांत कुमार के अनुसार यह प्रतिमा त्रिआयामी प्रतिमा है। जिससे कर्णाटों का स्थानीय शैलीगत विशेषताओं की जानकारी मिलती है जो दक्षिण भारतीय मूर्ति कला शैली का, उत्तर भारतीय कला शैली के साथ समन्वयकारी प्रभाव को स्पष्ट करता है।

          ग्रामीणों में प्रचलित किवदंती के अनुसार किसी समय धर्मपुर पोखर के नजदीक एक पुजारी का परिवार रहा करता था। बात जो भी हो लेकिन अब लगभग इतना तो तय ही है कि उक्त पोखर के आसपास मंदिर परिसर रहा होगा। 

          जिस प्रकार तालाब में जाइठ के चारों ओर से मूर्तियां और मिट्टी के कलश(जिसके अंदर धान और कौड़ी थे) मिले हैं इससे पता चलता है कि यहाँ कुछ पूजा का संकेत भी है। 

          सबसे खास यहाँ का भौगोलिक परिदृश्य और नजदीक में स्थित अन्य पुरास्थलें हैं। धर्मपुर पोखर से ठीक 4 किमी  उत्तर-पश्चिम में ऐतिहासिक "पंचोभ" गांव है जिससे ठीक 1 किमी पूरब में एक विशाल पोखर  "लखनसार" अवस्थित है जो अपने विशालता के लिए जाना जाता है। लखनसार पोखर का क्षेत्रफल 9लाख 90 हजार वर्गफुट है और धर्मपुर पोखर 3लाख 53हजार 650 वर्गफुट में फैला हुआ है। मिथिला में प्रयुक्त होने वाला शब्द सार(साइर) का मतलब सागर होता है जो प्रायः विशाल तालाबों के नामकरण में प्रयुक्त होने वाला शब्द है। पंचोभ के ही बंगलिया डीह से संग्राम गुप्त का प्रसिद्ध "पंचोभ ताम्र पत्र" मिला हुआ था। बगल के डीहरामपुर गांव से भी कर्णांट कला शैली का प्रतिमा प्राप्त हो चुका है। सबसे बड़ा आश्चर्य की बात यह है कि धर्मपुर पोखर से एक सड़क सीधी लाइन में पंचोभ गांव तक जाती है जो दोनों स्थल के आपसी संबंध को दर्शाता है। किसी समय निश्चित रूप से ही यह दोनों स्थल एक-दूसरे से सीधे संपर्क में रहा होगा। पूरब-दक्षिण में दरभंगा जिला का एक महत्वपूर्ण पुरास्थल अम्मा डीह तो दक्षिण में भीमा डीह मौजूद है। अम्मा डीह का ऊंचाई करीब 20-25 फीट तक है, जहाँ पर आज तक बाढ़ का पानी नहीं पहुँच सका है, जबकि यह क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां से समय-समय पर मृद्भाण्डावशेष आदि मिलते रहते हैं। वहीँ भीमा डीह से एक बार एक मृद्भाण्ड भरा हुआ बड़ा-बड़ा लोहे का कील मिला हुआ था। यहाँ जिस तरह के आकृति अंकित ईंट से निर्मित कुआँ स्थित है, इसी प्रकार का कुआँ हायाघाट प्रखंड के बसुआरा डीह पर भी स्थित है(बसुआरा से मुझे पूर्व में NBP के अवशेष प्राप्त हुए थे)। एक कुआँ डीह के पूर्वी सीमा पर है। स्थल से 1 किमी उत्तर 5कुआँ का संगम था ऐसा स्थानीय बताते हैं और यहीं से लगभग 1किमी और उत्तर धर्मपुर पोखर स्थित है। इस प्रकार धर्मपुर पोखर का सम्बन्ध भीमा डीह से भी हो सकता है।

         सभी का व्याख्या बहुत ज्यादा है, इसीलिए आज इतना ही...... इस समस्त ऐतिहासिक परिक्षेत्र का गहन अन्वेषण अति आवश्यक है। 

                                    :-मुरारी कुमार झा(पुरातत्व)

Comments

Popular posts from this blog

एक विशिष्ट "दान"

शिवलेश्वर धाम(सिमर दह) की यात्रा