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एक विशिष्ट "दान"

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           प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, कामेश्वर नगर दरभंगा, को सुपुर्द किया गया लाखों वर्ष प्राचीन "बहुमूल्य वृक्ष जीवाश्म"              दिनांक 16/08/2021 को पूर्व विभागाध्यक्ष(प्रा भा इ पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग) डा अयोध्या नाथ झा के द्वारा श्री वशिष्ठ नारायण झा(से नि प्रधान मुख्य वन संरक्षक, बिहार) के सौजन्य(इन्होंने विभाग को दान दिया है।) से प्राप्त वृक्ष जीवाश्म को प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग को सुपुर्द किया गया।             उक्त ख़बर पाकर मैं निरीक्षण को विभाग पहुंचा..... जीवाश्म- "44सेमी व्यास और 139.5सेमी मोटाई के इस जीवाश्म के "वृक्ष वलय" विधि के अध्ययन से इसके लगभग 100 वर्षों तक के अवधि तक जीवित होने का मेरा अनुमान है। प्रकृति में जीवाश्म बनने की क्रिया सतत चलती रहती है। जीवाश्म बनने के लिए यह जरूरी है कि वृक्षों या वृक्ष के भागों को मृत्यु या टूटने के तुरंत बाद पूरा का पूरा बिना किसी जीवाणु, कवक, या दीमकों के संपर्क में आए हुए मिट्टी या

विगत 04 अप्रैल का मेरा हवाई जहाज(मेरा साइकिल) यात्रा(95किलोमीटर)

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                     यात्रा परिपथ...... आनंदपुर से प्रस्थान करते हुए सहोरा, मल्लहीपट्टी, रतनपुरा, ब्रह्मोत्तरा, थलवारा के महादेव मंदिर पर रुके और फिर  हिछौल, अम्मा डीह में नरेश सहनी से मिलते हुए नरकैट, महपत्ती, फुलवरिया, छतौना, ललबन्ना डीह, पोअरिया, बिशनपुर, हनुमाननगर ग्रामीण श्री सीताराम मिश्र के यहां रूककर भोजन हुआ तत्पश्चात अंकित कुमार के साथ हनुमाननगर प्रखंड कार्यालय (फुलवरिया डीह) गया जहां रोहित कुमार(पिता:- महेश पासवान, 2कक्षा) से मिलकर हनुमाननगर उत्क्रमित मध्य विद्यालय के रास्ते पुनः अंकित कुमार को घर पर छोड़ते हुए गोढैला, धामावीर, सिंहासिनी माई स्थान, पटोरी, बसुआरा, तीसी डीह, मोरो-गोढवार, अरै, अतरबेल, बिठौली, सिमरी, कादिराबाद, दरभंगा राज परिसर, लहेरियासराय, पंडासराय, रामनगर, मिर्जापुर, देवकुली, चंदनपट्टी, रघुनाथपुर, होरलपट्टी होते हुए पुनः अपने गंतव्य पर "आनंदपुर" पहुंच 95किमी के यात्रा का विराम हुआ।             हमारे आज के यात्रा परि

110किलोमीटर का हवाई जहाज(मेरा साइकिल) यात्रा....

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110किलोमीटर का हवाई जहाज(मेरा साइकिल) यात्रा....              विगत 11/04/2021(रविवार) को मैंने हवाई जहाज(मेरा साइकिल) यात्रा किया, जिसके दौरान दरभंगा जिला स्थित कतिपय अति महत्वपूर्ण पुरास्थलों और ऐतिहासिक मंदिरों का निरीक्षण किया।           03-04वर्ष पूर्व से श्री अतुल कृष्ण हमारे मित्र(फेसबुक के माध्यम से) हैं। उन्होंने जब मुझसे दरभंगा जिला स्थित गंगेश्वर स्थान के सूर्य प्रतिमा के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहा तब मुझे पता चला कि ये तो हमारे नजदीक के ही हैं। इन्होंने मुझे विगत 10फरवरी को मैसेज भेजा की, "प्रणाम सर, मेरा घर दरभंगा के जाले प्रखंड के रतनपुर गांव में है। यहां एक बहुत पुराना शिव मंदिर है, जो गंगेश्वर स्थान के नाम से जाना जाता है। यहां के मंदिर परिसर में एक मूर्ति रखी हुई है। लोग इसे "विष्णु भगवान" की मूर्ति मानकर पूजा करते हैं। पर मुझे ये भगवान सूर्य की मूर्ति लगती है। कृपया आप इस पर प्रकाश डालिए और एकबार आप स्वयं यहां आइए।" इस पर मैंने उन्हें उक्त सूर्य प्रतिमा से संबंधित विवरण दिए। साथ ही 11 अप्रैल को इस पुरास्थल के यात्रा के लिए सहमति

शिवलेश्वर धाम(सिमर दह) की यात्रा

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         बीते 25 जून को अपने गाँव- 'लवानी' से आनंदपुर जाने के क्रम में धूप ज़्यादा होने के कारण बहेड़ी से होते हुए न जाकर एक शॉर्ट कट लिया, जो सड़क इन दिनों 'श्री युगेश्वर सिंह मार्ग' के नाम से मशहूर हो रही है , इसी दौरान विचार आया कि रास्ते में पड़ने वाले गाँव- सलहा में स्थित सिमरदह पुरास्थल के अंतर्गत 'शिवलेश्वर धाम'(सिमर दह) का निरीक्षण करता ही जाऊं....           परिसर में पहुँच कर, निरीक्षण आरंभ करते हुए सबसे पहले वहाँ स्थित विशाल जलस्रोत, जिसमें अभी मखान लगा हुआ है, उसके किनारे पहुँचा, जहाँ पक्षियों के बच्चों के झुंड को देखकर दंग रह गया। शायद ही कोई मखान का पत्ता था, जो इन चूज़ों के अठखेलियों से अछूता परिलक्षित हो रहा था। एक साथ इतने सारे बगुले के बच्चों को मैंने जीवन में पहली बार देखा... यह मेरे लिए आश्चर्यजनक एहसास रहा। उसके बाद स्थानीय साहित्यकार श्री प्रकाश कुमार "छोटू" (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) के साथ वीडियो कॉल के माध्यम से 'शिवलेश्वर धाम' संबद्ध परिचर्चा करते हुए सबसे पहले पार्वती मंदिर